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चाटुकारिता में लिप्त पत्रकारों पर सीधा तमाचा है मेरा आज का उल्लेख़ #paidmedia #exposedmedia

यूँ तो पत्रकारिता समाज का अभिन्न अंग है जो समाज के हर पहलू को दर्पण की भांति स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है .पत्रकारिता निर्भीक स्वतन्त्र और साहसी होती है वह किसी भी संप्रभुता की अनुयायी हो ही नहीं सकती. क्योंकि पत्रकारिता का उतरदाइत्व ही है की वह समाज में हो रही प्रत्येक कड़ियों को प्रस्तुत करे तथा समाज में हो रहे भ्रष्टाचार व अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये परंतु बेहद खेद होता है मुझे इस बात पर कि आज की पत्रकारिता कितनी ज़्यादा कुटिल कपटी और कितनी क्रूर हो चुकी है तथा आज की पत्रकारिता अब पत्रकारिता नहीं रही अब यह सिर्फ़ चाटुकारिता मात्र है .कभी शासन-प्रशासन तो कभी अपराधि व उद्योगपतियों की चाटुकारिता में ही लिप्त है आज कल पत्रकारों से सच की उम्मीद करना ही व्यर्थ है सब के सब अब अनावश्यक चाटुकारिता में लिप्त हैं .जितने भी समाचार पत्र - पत्रिकाएँ हैं सब कि सब अनावश्यक सामग्री से भरी हुई हैं जिनका वास्तविकता से कोई संबंध ही नहीं .
उनमें किसी ना किसी राजनीतिक संगठन की प्रशंशा से की गंध आती है
मुझे या कहते हुए बहुत ही खेद होता है की हर चीज का राजनीतीकरण हो चुका है वह चाहे पत्रकारिता हो या अपराध हो।
अपराधी तब तक ही अपराधी माना जाता है जब तक की वह राजनीति में शामिल नहीं हो जाता.राजनीति में शामिल होते ही वह एक राज़ नेता कहलाता है जिसके पास अब पूरी स्वतंत्रता है अपराध को बढ़ावा देने की वही अगर बात करूँ पत्रकारों की.
तो उन्हें अच्छी खासी क़ीमतों पर ख़रीद लिया जाता है ताकि उन अपराधियों की छवि को और सुधारा जा सके यही है हमारे समाज की वास्तविकता जहां आम आदमी अगर आवाज़ उठायेगा भी तो उसकी आवाज़ दबा दी जाएगी

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